सनातन धर्म में सृष्टि की रचना करने वाले भगवान विश्वकर्मा जयंती हर साल 17 सितंबर को बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन सभी लोग परम पिता भगवान ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र माने जाने वाले विश्वकर्मा की पूरे विधि-विधान से पूजा करते हैं और उनसे मन की मुराद पाने के लिए कामना करते हैं। वास्तु शिल्प के रचनाकार माने जाने वाले भगवान विश्वकर्मा की जयंती हर साल कन्या संक्रांति के दिन पड़ती है, ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म कन्या संक्रांति के दिन हुआ था। तभी से विश्वकर्मा की पूजा की जाने लगी।
विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त
भगवान विश्वकर्मा की जयंती पर इस साल उनकी पूजा के लिए सबसे उत्तम समय या फिर कहें शुभ मूहर्त कन्या संक्रान्ति के समय सुबह 07:50 से लेकर 12:05 बजे तक रहेगा। इस समय सभी लोग भगवान ब्रह्मा जी पूजा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। भगवान मान्यता है कि विश्वकर्मा जी की शुभ महूर्त में पूजा करने से लोगों की हर मनोकामना पूरी होती है।
भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधि
भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने के लिए आपको सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर या मूर्ति के सामने बैठ जाएं और उसके बाद सबसे पहले गंगाजल से मूर्ति या उनके चित्र को स्नान कराएं और उसके बाद अक्षत, रोली, हल्दी, चंदन, फूल, रोली, मौली, फल-फूल, धूप-दीप, मिष्ठान आदि अर्पित करे। इसके बाद ॐ विश्वकर्मणे नमः मंत्र का 108 बार जप करें और सबसे अंत में भगवान विश्वकर्मा की आरती करें। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा को चढ़ाया गया प्रसाद सभी लोगों को बांट दें और स्वयं भी ग्रहण करें।
विश्वकर्मा पूजा का धार्मिक महत्व
सनातन धर्म में ऐसा माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने देवी-देवताओं के लिए तमाम अस्त्र-शस्त्र समेत स्वर्गलोक, इंद्रलोक, लंका नगरी, द्वारिका नगरी आदि का निर्माण किया था। सृष्टि के पहले शिल्पकार माने जाने वाले भगवान विश्वकर्मा की जयंती पर पूजा करने से व्यक्ति के कारखाने से जुड़े यंत्र, मशीनें और वाहन आदि बगैर किसी रुकावट के पूरे साल अच्छी तरह से चलते हैं। जिस व्यक्ति पर भगवान विश्वकर्मा की कृपा बरसती है, उसका कारोबार दिन दोगुना, रात चौगुना बढ़ता है। भगवान विश्वकर्मा की कृपा से लोगों के जीवन में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं रहती है। उसका घर और कारोबार खूब फलता-फूलता है।