
चंदौली। काशी हिंदू विश्वविद्यालय पुरातत्व विभाग की टीम की ओर से क्षेत्र के माटीगांव में चल रहे उत्खनन में शुक्रवार को जमीन के नीचे वृहद आकार की गोलाकार संरचना मिली। पुरातत्वविदों ने इसे गुप्तकालीन मंदिर का अरघा बताया है। इससे माटीगांव में दो हजार साल पहले मानव सभ्यता विकसित होने की संभावना जताई जा रही है।
बीएचयू की टीम गुरुवार से ही गांव स्थित प्राचीम शिवमंदिर के समीप खोदाई करा रही है। शुक्रवार को एक बृहद आकार का अरघा मिला। इसका संपूर्ण व्यास 45 सेंटीमीटर व आंतरिक व्यास 36 सेंटीमीटर है। अरघा के बीचोबीच एक अंडाकार छिद्र शिवलिंग को प्रतिष्ठापित करने के लिए बना है। इसकी गहराई अधिकतम 10 सेंटीमीटर है। अरघा के प्रणाल की लंबाई 18 सेंटीमीटर व प्रणाल सहित अरघा की संपूर्ण चौड़ाई लगभग 63 सेंटीमीटर है। गोलाकार मंदिर के गर्भगृह का फर्श लगभग 25 सेंटीमीटर ऊंचा है। ईंट की संरचना सुरखी चुनें व प्लास्टर से विनिर्मित है। संरचना 10-10 मीटर के ट्रेंज के उत्तरी भाग में प्राप्त हुई है। उत्खनन के निदेशक डा. विनय कुमार का कहना है कि खोदाई में प्राप्त संरचना गुप्तकालीन वृत्ताकार मंदिर का अवशेष है। इसमें प्रयुक्त ईंटे संभवतः कुषाणकालीन है। इसके ईंटों का परिमाप 30×25×5 सेंटीमीटर है। इसकी तिथि लगभग 2200 साल पूर्व होने का अनुमान है। उत्खनन का कार्य पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर ओंकारनाथ सिंह की देखरेख में चल रहा है। उत्खनन टीम में विभाग के डा. अभिषेक सिंह ,शोधछात्र परमदीप पटेल तथा राघव साहनी शामिल रहे।