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चंदौली। जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में सपा को करारी शिकस्त का मुंह देखना पड़ा है। इस हार पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि जिला पंचायत के चुनाव में पार्टी के सर्वाधिक 11 उम्मीदवार चुनाव जीते। लेकिन जब मतदान का समय आया तो सपा समर्थिक तेजनारायण यादव को महज पांच वोट मिले, जिसमें एक वोट खुद प्रत्याशी का है। हमने उन पांच प्रमुख कारणों की पड़ताल की जो सपा की हार का कारण बने।
पार्टी में अंतर्कलह
11 पार्टी समर्थित और चार बागी जिला पंचायत सदस्यों को मिला दें तो सपा के पास 15 सदस्यों का समर्थन था। चुनाव जीतने के लिए महज तीन और सदस्यों के समर्थन की जरूरत थी। सपा में कद्दावर नेताओं की कमी नहीं है। पूर्व सांसद, विधायक और तीन पूर्व विधायकों को मिला दें तो पार्टी कहीं से कमजोर नहीं थी। लेकिन अंतर्कलह जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में पार्टी को ले डूबी। बड़े नेता एक दूसरे से कन्नी काटते रहे। कुछ जिला पंचायत सदस्यों ने बगावती तेवर अपना लिए थे। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप भी लगाए गए। पार्टी की गोपनीय बैठकों की वीडियो वायरल होकर सोशल मीडिया और मीडिया में आईं, जिससे असहज स्थिति पैदा हुई।
कमजोर उम्मीदवार
सपा ने पार्टी के समर्थन से जीते कई जिला पंचायत सदस्यों को दरकिनार कर निर्दल जिला पंचायत सदस्य तेजनारायण सिंह यादव को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया, बहुतेरे सदस्यों को पार्टी का यह फैसला रास नहीं आया। अंदरखाने में इसका विरोध हुआ। तेज नारायण यादव जिला पंचायत सदस्यों पर प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहे।
परिवारवाद में उलझी पार्टी
जिला पंचायत अध्यक्ष पद के दावेदारों की बात करें तो सपा के पास विकल्पों की कमी नहीं थी। 11 प्रत्याशी पार्टी के समर्थन से जिला पंचाय सदस्य पद का चुनाव जीते। आधा दर्जन जिला पंचायत सदस्य पिछड़ा वर्ग से जुड़े हैं। लेकिन पार्टी ने पूर्व सांसद रामकिशुन के भतीजे और निर्दल जिला पंचायत सदस्य तेजनारायण को ही अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाया। कुछ सदस्यों ने पार्टी के इस निर्णय का खिलाफ खुलेआम विरोध किया। जिला पंचायत सदस्य बबिता यादव और उनके पति चंद्रशेखर यादव ने तो पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ नामांकन फार्म भी खरीद लिया था और परिवारवाद की मुखालफत भी की।
कमजोर जिला नेतृत्व
नेतृत्व की कमजोरी भी सपा की हार का कारण बनी। जिलाध्यक्ष पार्टी के नेताओं और जिला पंचायत सदस्यों के बीच सामंजस्य स्थापित कराने में नाकाम रहे। आगे बढ़कर चुनौतियों का सामना नहीं कर पाए। नेतृत्व की कमजोरी के चलते ही जिला पंचायत सदस्य मनमानी करते रहे। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे। जिलाध्यक्ष सदस्यों को एकजुट नहीं कर सके ना ही वरिष्ठ नेताओं को विश्वास में ले पाए।
छत्रबली सिंह की सपा में घुसपैठ
प्रत्यक्ष औश्र अप्रत्यक्ष रूप से लगातार 10 वर्ष जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज रहे छत्रबली सिंह ने सपा के वोट बैंक में सेंध लगाई। छत्रबली की पत्नी सरिता सिंह सपा के समर्थन से ही चुनाव जीती थीं। छत्रबली सिंह की सपा में अच्छी पैठ है। जिला पंचायत सदस्यों के साथ ही पार्टी के कुछ शीर्ष नेताओं संग अच्छेे तालमेल का भी छत्रबली सिंह ने फायदा उठाया। भाजपा उम्मीदवार के साथ छत्रबली सिंह का नाम जुड़ने के बाद जिले के कुछ वरिष्ठ नेता चुप्पी साध गए। जबकि सपा के अधिकांश जिला पंचायत सदस्य बगैर अतिरिक्त प्रयास के छत्रबली सिंह की तरफ खिंचे चले गए।