हिंदू धर्म में प्रत्येक माह कई व्रत व त्योहार आते हैं और सभी त्योहार के पीछे एक महत्वपूर्ण वजह छिपी होती है। फिलहाल भाद्रपद माह चल रहा है और इसके समाप्त होते ही अश्विन माह शुरू हो जाएगा। अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि बहुत ही खास होती है क्योंकि इस दिन जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है जिसे कई जगहों पर जितिया या जिउतिया नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत विशेष तौर पर पूर्वांचल क्षेत्र में रखा जाता है और इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति व संतान की सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। आइए जानते हैं इस साल कब है जीवित्पुत्रिका व्रत और पूजा का शुभ मुहूर्त?
डेट और शुभ मुहूर्त
जीवित्पुत्रिका व्रत पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में का विशेष पर्व है। इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना से 24 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं। साथ ही यह व्रत संतान की खुशहाली और परिवार में सुख-समृद्धि की कामना से भी रखा जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत हर साल अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन रखा जाता है जो कि पंचांग के अनुसार इस साल 6 अक्टूबर 2023, शुक्रवार को रखा जाएगा।
जीवित्पुत्रिका व्रत 3 दिनों तक चलता है और इसकी शुरुआत अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से होती है। इस बार सप्तमी तिथि 6 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 33 मिनट पर शुरू होगी और 7 अक्टूबर को सुबह 8 बजकर 9 मिनट पर इसका समाप्त होगी। सप्तमी तिथि से एक दिन पहले नहाय-खाय होता है जो कि 5 अक्टूबर को है. यानि जीवित्पुत्रिका व्रत 5 अक्टूबर से 7 अक्टूबर तक रखा जाएगा।
6 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा, जिसे शुभ मुहूर्त माना जाता है। इसके अलावा 6 अक्टूबर को रात 9 बजकर 32 मिनट पर सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है जो कि 7 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 18 मिनट तक रहेगा।
क्यों करते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत?
धर्म शास्त्रों के अनुसार महाभारत के युद्ध में जब अश्वत्थामा के पिता की मौत हो गई थी तो वह पांडवों से पिता की मौत का बदला लेने के लिए उनके शिविर में घुस गए। शिविर में उस समय 5 लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। कहते हैं कि वह पांचों पांडव नहीं बल्कि पांडवों व द्रोपदी की 5 संतानें थी। जिसके बाद अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली।
दिव्य मणि छिनने के बाद अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला लेकिन भगवान कृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को अपने सभी पुण्यों का फल देकर गर्भ में पुन: जीवित कर दिया। जन्म के बाद इस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। पौराणिक कथाओं के अनुसार तभी से महिलाएं संतान प्राप्ति व संतान की सलामती के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत रखती हैं।