पं. अभुलेंद्र दूबे की कलम से
मो. 6388403618
जिसकी कंडली में सूर्य कमजोर होता है उसके जीवन में परेशानियों का दौर चलता ही रहता है। और जिसकी कुडंली में सूर्य अच्छा होता है उसे हमेशा ही सफलताएं, धन, वैभव, सामाजिक मान, सम्मान और पद-प्रतिष्ठा मिलती है। जिस व्यक्ति पर सूर्य की कृपा हो जाए उसे जीवन में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। ऋग्वेद में कहा गया है सूर्यात्मा जगत स्तस्थुषश्चश, सूर्य आत्मा है, यह स्थिर आत्म कारक है । आइए जानते हैं कुंडली के 12 भावों में सूर्य का प्रभाव।
लग्न भाव में सूर्य का प्रभाव
जिसके लग्न में सूर्य होगा वह जातक अस्थिर किंतु दृढ़ इच्छाशक्ति वाला होता है। जातक का ललाट विशाल होता है और नाक भी बड़़ी हो सकती है। हांलाकि ताउम्र जातक का शरीर दुबला-पतला रहता है। लग्नस्थ सूर्य नेत्ररोग का कारण बन सकता है। जातक यदि स्वतंत्र व्यवसाय करे तो ज्यादा सफल हो जाता है। नौकरी में भी उच्चपद की प्राप्ति होती है।
द्वितीय भाव में सूर्य का प्रभाव
द्वितीय भाव का सूर्य अक्सर जातक को उग्र, उत्तेजित एवं ऊँची आवाज में बोलने वाला बनाने के साथ ही झगड़ालू प्रवित्ति का बना देता है। सूर्य के द्वितीय भाव में स्थित होने से उसकी सप्तम दृष्टि मृत्यु भाव, अष्टम भाव पर पड़ती है, जिससे जातक की आयु लंबी होती है।
तृतीय भाव में सूर्य का प्रभाव
तीसरे भाव में स्थित सूर्य के प्रभाव से रचनात्मक मनोवृत्ति वाला, प्रतापी, पराक्रमी जातक और यशस्वी होता है। जातक बुद्धिमान और ज्ञानी होता है। वह सदैव दूसरांे की सहायता के लिए तत्पर रहता है। वहां से नवम भाव को देखने से जातक भाग्यशाली, घार्मिक, आस्तिक एवं कार्यकुशल होता है। उसे उच्चपद की प्राप्ति होती है।
चतुर्थ भाव में सूर्य का प्रभाव
चतुर्थ भाव में सूर्य के प्रभाव से जातक राजनतिकि क्षेत्र में रुचि रखने वाला होता है। इस भाव में अगर सूर्य कहीं पीड़ित न हो तो जातक को उच्च पद प्रतिष्ठा दिलाता है। जातक प्रसिद्ध, कठोर और गुप्त विद्या में रूचि रखने वाला होता है। यहां से सूर्य की पूर्ण दृष्टि दशम स्थान पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक अपने कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
पंचम भाव में सूर्य का प्रभाव
पंचम भाव में सूर्य के होने से जातक कुशाग्र, तेजस्वी, तीक्ष्ण बुद्धि वाला और क्रोधी होता है। जातक पढ़ने में अच्छा और अच्छी यादाश्त वाला होता है। यहां से सूर्य की पूर्ण दृष्टि एकादश स्थान पर पड़ती है, जिसके प्रभाव से जातक उच्च कोटि की आय वाला होता है। जातक यशस्वी और धनी होता है और सरकार से सम्मान प्राप्त होता है।
छठवें स्थान में सूर्य का प्रभाव
छठवें भाव में सूर्य होने से जातक बलवान, तेजस्वी और निरोगी होता है। जातक निडर होता है। जिससे उसे शत्रुओं का जरा भी भय नहीं होता। जातक में साहस एवं पराक्रम भरपूर से होता है। यहां सूर्य की पूर्ण दृष्टि द्वादश भाव पर पड़़ती है, जिसके चलते जातक अपव्ययी होता है लेकिन धनार्जन में बाधा का सामना करना पड़ता है।
सातवें स्थान में सूर्य का प्रभाव
सप्तम भाव में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक स्वभाव से कठोर और प्रखर तथा प्रभावशाली, साहसी, यशस्वी, तीक्ष्ण स्वभाव वाला हो जाता है। लग्न पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि से जातक प्रतिभाशाली, राजमान्य सफलता अर्जित करने के साथ-साथ अहंकारी भी होता है। वह किसी भी प्रकार के दबाब में नहीं रहना चाहता है। हालांकि यहां सूर्य के प्रभाव से जातक का अपने जीवन साथी से संबंधों में खटास होती रहती है।
अष्टम भाव में सूर्य का प्रभाव
अष्टम स्थान में सूर्य के प्रभाव से जातक झगड़ालू स्वभाव का और अपव्ययी होता है। वह रहस्यमयी विद्याओं में रूचि रखने वाला होता है। दूसरी ओर जातक अस्थिर विचारों वाला एवं बातूनी होता है। द्वितीय भाव पर सूर्य की दृष्टि से जातक को पैतृक संपत्ति मिलने में बाधाएं आती हैं। जातक पारिवारिक सुख में हमेशा कमी महसूस करता है।
नवम् भाव में सूर्य का प्रभाव
नवम भाव में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक हमेशा दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहता है। जातक आत्मविश्वास से परिपूर्ण प्रसिद्ध और आस्तिक होता है तथा महत्वाकांक्षी भी होता है। यहां से तीसरे भार पर दृष्टि से जातक को अपने भाइयों से कष्ट मिलता रहता है। जातक यशस्वी होता है लेकिन अपनी कथनी और करनी में अंतर के चलते परेशानी का भी समाना करता है।
दशम भाव में सूर्य का प्रभाव
दशम भाव में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक साहसी और आत्म केंद्रित रहता है। वह धनी, प्रसिद्ध, साहसी होने के साथ-साथ लगातार सफलता प्राप्त करता है। यहां से चतुर्थ स्थान को देखता है, जिसके प्रभाव से जातक अपनी माता के स्वास्थ को लेकर परेशान और चिंतित रहता है। इस लिए वह साधु संतो का मान.सम्मान करता रहता है।
एकादश भाव में सूर्य का प्रभाव
एकादश भाव में स्थित सूर्य से जातक यशस्वी, धनी, प्रसिद्ध विद्वान और सद्गुणी होता है। वह हमेशा सत्य का समर्थन करने वाला होता है। जातक स्वाभिमानी, सुखी, बलवान होने के साथ-साथ सदाचारी होता है। यहां से पंचम भाव को देखता है। परिणाम स्वरूप जातक को संतान सुख में कमी रहती है। जातक की संतान अल्पायु, मूर्ख एवं झगड़़ालू होती है।
द्वादश भाव में सूर्य का प्रभाव
बारहवें भाव में सूर्य के स्थित होने से जातक स्वभाव से झगड़़ालू अपव्ययी और आलसी होता है। वह मित्रहीन एवम् बुद्धिहीन होता है। जातक गुप्त एवं परामानसिक विज्ञान में रूचि रखता है। सूर्य की दृष्टि छठवें स्थान पर पडती है। जिसके प्रभाव से जातक शत्रुओं का विनाश करता है। उसका अपने मित्रों से भी मधुर संबंध नहीं होता।
नोट–सूर्य का बारहों भावों में किया गया यह फलादेश किसी लग्न विशेष पर नहीं है। इस लिए यह किसी भी कुंडली के लिए एकदम से सटिक नहीं है। लग्न और अन्य ग्रहों की स्थिति के आधार पर फलादेश में अंतर हो सकता है।