चंदौली। पहले सदर विधानसभा सीट का हिस्सा रही सैयदराजा विधानसभा 2012 में अस्तित्व में आई। इसे क्रांतिकारियों की धरती भी कहा जाता है। पिछले चुनाव में दो बाहुबलियों बीजेपी के सुशील सिंह और बसपा के विनीत सिंह के बीच सीधा मुकाबला था। बदले राजनीतिक समीकरण में इस दफा बीजेपी और सपा के बीच मुकाबले के कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि जातिगत समीकरण के आधार पर बसपा की मौजूदगी को नकारा नहीं जा सकता। हालांकि बसपा और कांग्रेस ने अभी तक प्रत्याशी नहीं उतारे हैं।
क्रांतिकारी रहा है सैयदराजा का इतिहास
सैयदराजा की धरती की विशेषताएं हैं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यहां के रणबांकुरों ने ब्रिटिश हुकूमत के दांत खट्टे कर दिए थे। यहां शहीद स्मारक व रेलवे स्टेशन आज भी आजादी के लिए लड़ी गई जंग का गवाह हैं।
सैयदराजा विधान सभा एक नजर में
सैयदराजा विधानसभा सीट 2012 में अस्तित्व में आई। इससे पहले यह चंदौली विधानसभा का हिस्सा रही। मुगलसराय, सैयदराजा व बबुरी क्षेत्र चंदौली सदर विधानसभा में सम्मिलित था। कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे पंडित कमलापति त्रिपाठी यहां से विधायक हुआ करते थे। भाजपा के शिवपूजन राम ने 1991 व 96 में दो बार जीत हासिल की। 2007 में शारदा प्रसाद ने उन्हें हराकर हार का बदला लिया। सैयदराजा विधानसभा सीट बाहुबलियों के सियासी टक्कर की गवाह रही है। 2012 के विस चुनाव में यहां प्रगतिशील मानव समाज पार्टी से माफिया डान बृजेश सिंह ने अहमदाबाद जेल में रहते हुए चुनावी मैदान में ताल ठोकी थी। निर्दल प्रत्याशी रहे मनोज कुमार सिंह डब्ल्यू ने उन्हें पटखनी दे दी थी। 2017 में इस सीट पर दिलचस्प मुकाबला रहा। भाजपा से सुशील सिंह तो बसपा से श्यामनारायण सिंह उर्फ विनीत सिंह के साथ ही सपा से मनोज सिंह चुनावी मैदान में थे। विनीत ने रांची जेल में रहते हुए चुनाव लड़ा। कड़े मुकाबले में सुशील सिंह ने जीत हासिल कर अपने चाचा की हार का बदला लिया। सुशील को 78,869 व विनीत को 64,375 वोट मिले थे।
जातिगत समीकरण को साधने की कोशिश
सैयदराजा विधानसभा क्षेत्र में राजपूत मतदाताओं की बाहुल्यता है। यहां ब्राह्मण, यादव, अनुसूचित, वैश्य मतदाता अच्छी-खासी तादात में हैं। राजभर मतदाताओं की भूमिका भी अहम साबित होगी। यहां मतदाताओं की कुल संख्या तीन लाख 31 हजार 666 है।