
चंदौली। मंगलाचरण से अमंगल नहीं होता है। इसलिए श्रीमद्भावगत महापुराण में मंगलाचरण का विशेष महत्व है। इस श्लोक में किसी देवता का स्पष्ट नाम नहीं उल्लिखित है। इसमें सत्यम परम धीमही अर्थात सत्य स्वरूप परमात्मा का ध्यान करना चाहिए। उक्त बातें पीडीडीयू नगर के शाहकुटी श्रीकाली मंदिर स्थित अन्नपूर्णा वाटिका प्रांगण में चल रहे सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद्धागवत कथा के दूसरे दिन कथा वाचक अखिलानंद जी महाराज ने कही।
उन्होंने कहा कि किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पूर्व मंगलाचरण करना चाहिए, क्योंकि उक्त कार्य करने मात्र से उस कार्य में किसी अमंगलता का प्रवेश नहीं होता। श्रीमद् भागवत् महापुराण के मंगलाचरण का विशेष महत्व है। उन्होंने श्रीमद्भागवत् महापुराण के प्रारंभ के तीन श्लोकों की व्याख्या की। कहा कि प्रथम श्लोक का भाव है किम् ध्येयम् यानी जीव को किसका ध्यान करना चाहिए, जिस पर बताया कि सत्य स्वरूप परमात्मा का ध्यान ही श्रेष्ठ है। दूसरे श्लोक किम ग्येयम् अर्थात हमे गान किसका करना चाहिए तो मानव को भगवान के चरित्रों का गान करना चाहिए। भगवान का चरित्र ही ईश्वर नाम स्वरूप है, क्योंकि कलिकाल में भगवत् नाम की बड़ी महिमा है। तीसरे श्लोक का भाव उद्घृत करते हुए बताया कि किम पेयम् अर्थात मनुष्य को क्या पान करना चाहिए। उन्होंने भागवत् को पेय पदार्थ बताया। कहा कि भागवत् महापुराण वेदरूपी वृक्ष से निकला हुआ फल है, जो अति सरस है। इस फल की विशेषता ऐसी है कि भगवान के रसिक भावुक भक्त इसका बार बार पान करने को आतुर रहते हैं। जो एक बार इसका पान कर लेता है वह सदैव के लिए ईश्वर का हो जाता है। मुख्य यजमान शैलेश तिवारी व यज्ञनारायण सिंह रहे। विशेष अतिथि के रूप में पहुंचे अनिल सिंह, नरेन्द्र सिंह को व्यासपीठ से दुपट्टा प्रदान कर आशिर्वाद प्रदान किया गया। इस अवसर पर पीएन सिंह, उपेन्द्र सिंह, बृजेश सिंह, संजय अग्रवाल, अतुल दुबे, संतोष शर्मा, संजय तिवारी, कन्हैयालाल जायसवाल, त्रिभुवन उपाध्याय, रेखा अग्रवाल, दिनेश सिंह, संतोष पाठक, राजेश तिवारी, आलोक पांडेय, वैभव तिवारी, भागवत नारायण चौरसिया, श्रीकांत सिंह मौजूद रहे।