चंदौली। जिले में भाजपा के किले को ध्वस्त करने के लिए सपा ने इस बार पुख्ता रणनीति तैयार की है। सपा ने पूर्वांचल की राजनीति में चर्चित रहे पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतार दिया है। पीडीए के फार्मूले के साथ लोकसभा चुनाव में उतरी सपा ने किसी पिछड़े की बजाए अगड़े पर दांव लगाकर भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। हाल के दिनों में पूर्वांचल में हुई घटनाओं को देखते हुए राजपूत मतदाताओं के भाजपा के खिलाफ एकजुट होने के संकेत मिल रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
जौनपुर से लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे पूर्व सांसद धनंजय सिंह को चुनाव से कुछ दिनों पहले सजा होने से पूर्वांचल के राजपूतों में नाराजगी है। लोगों को इसकी उम्मीद नहीं थी। इसके पीछे सरकार की मंशा मानी जा रही है। लोगों की मानें तो धनंजय की सजा की वजह से राजपूत भाजपा से अंदर ही अंदर नाराज हैं और इस बार चुनाव में दांव पलट सकते हैं। चंदौली में 2022 में साधना सिंह का टिकट कटने से राजपूतों का एक वर्ग पार्टी से खासा नाराज था। पार्टी ने डैमेज कंट्रोल करने के उद्देश्य से साधना को राज्यसभा भेजा। हालांकि यह नाराजगी अभी पूरी तरह से दूर नहीं हुई है। सपा प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। उनका राजपूत वर्ग के साथ ही अन्य वर्गों में भी अच्छा-खासा प्रभाव है। उनके चुनाव मैदान में आने से राजपूत मतदाताओं के लिए विकल्प मिल सकता है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो हमेशा साथ देने वाले राजपूत मतदाता यदि बीजेपी से बिदके तो पार्टी के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करना बड़ी चुनौती हो जाएगी। जिले में लगभग पौने दो लाख राजपूत मतदाता हैं। यदि राजपूत मतदाता वीरेंद्र सिंह के पाले में गए तो सपा के बेस वोट बैंक की बदौलत उनका पलटा चुनाव में भारी पड़ सकता है। ऐसे में भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी। पिछले लोकसभा चुनाव में भी सपा-बसपा गठबंधन ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी।