चंदौली। बावरिया गिरोह…। नाम सुनते ही शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती है। चोरी और लूट की वारदात को अंजाम देते वक्त किसी भी हद तक जा सकते हैं। वारदात का यही तरीका इन्हें क्रूर बनाता है। बावरिया गिरोह के खौफनाक वारदातों की लंबी फेहरिस्त है। बावजूद पुलिस इनपर कायदे से नकेल नहीं कस पाती। कारण हैं इनका शातिराना तरीका और रहन-सहन। चंदौली पुलिस ने बावरिया गिराह के आठ सदस्यों को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया है। आज हम बावरिया गिरोह और इसके काम करने के तौर तरीकों को थोड़ा नजदीक के जाने की कोशिश करेंगे। सीओ मुगलसराय अनिरुद्ध सिंह ने अपने पुलिसिया कार्यकाल के दौरान इस गिरोह को काफी करीब से देखा है।
भुवाल माता की पूजा कर निकलता है बावरिया गिरोह
बदायूं और शाहजहांपुर जिला बावरिया गिरोह का गढ़ कहा जाता है। गिरोह ठंड शुरू होने के साथ अपने खौफनाक मिशन पर निकलता है। ठंड का मौसम इसलिए चुनते हैं ताकि वारदात को अंजाम देने के बाद आसानी से फरार हो सकें। अक्तूबर या नवंबर महीना इनके लिए ज्यादा मुफीद रहता है। इस दौरान इनकी जो टोली निकलती है उसे ये डोलना बोलते हैं। निकलने से पहले ये अपनी कुलदेवी भुवाल माता की पूजा करते हैं। इस दौरान बकरे की बलि दी जाती है और प्रसाद से रूप में उसी की दावत उड़ाते हैं।
कस्बाई इलाकों की छोटी दुकानों को बनाते हैं निशाना
बावरिया गिरोह के सदस्य पूरे परिवार के साथ निकलते हैं, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी होते हैं। छोटे कस्बों, रेलवे या बस स्टैंड के पास अपना ठिकाना बनाते हैं। महिला और पुरुष सदस्य फेरी लगाकर फूल, गमले, चारपाई या ऐसे ही सामान बेचते हैं इस दौरान घटनास्थल की रेकी भी करते हैं। ज्यादातक कस्बों या ग्रामीण क्षेत्रों की आभूषण की दुकान इनका निशाना होती हैं। पकड़े जाने या पुलिसिया कार्रवाई के दौरान ये अपने छोटे बच्चों को आगे कर देते हैं। यही नहीं जब कभी पुलिस इनके पास तक पहुंच जाती हैं तो बच्चों को बेरहमी के साथ जमीन पर भी पटक देते हैं। चोरी या लूट के दौरान इनका कोई वसूल या कायदा नहीं होता। हमले के दौरान तमंचा या राड का इस्तेमाल करने से नहीं चूकते।
गांव में बनवाते हैं मंदिर एक हिस्सा वकील के लिए भी
घटनाओं को अंजाम देने के बाद छोटे स्टेशनों से ट्रेन पकड़कर वापस लौट जाते हैं। सीओ अनिरुद्ध सिंह बताते हैं कि लूट और चोरी के पैसे से ही गांव में कुलदेवी का मंदिर बनवाते हैं साथ ही वकील के लिए भी कुछ पैसे रहते हैं जो पकड़े गए सदस्यों का केस लड़ता है। बदायूं में बतौर सीओ अनिरुद्ध सिंह ने इन्हें सुधारने और जागरूक करने की दिशा में पहल की थी। लेकिन शिक्षा का अभाव इनके राह का सबसे बड़ा रोड़ा है।