
चंदौली। चकिया नगर से मात्र पांच किलोमीटर दूर स्थित सिकंदरपुर गांव में चंद्रप्रभा नदी के तट पर बना कोट भवानी मंदिर सैकड़ों साल पुराना है। राजा बलवंत सिंह के आरामगाह के ऊपर स्थापित कोट मां भगवती देवी का मंदिर शक्त्ति उपासना की एक प्रमुख केंद्र है। यहां विद्वान पंडित दोनों वासंतिक (चैत्र) एवं शारदीय नवरात्र के साथ ही हमेशा साधनारत रहते हैं। मां भगवती श्रद्धा व विस्वास की प्रतिमूर्ति हैं। लोगो का मानना है कि सच्चे मन से मांगी गयी मुरादे मां अवश्य पूरी करती है। मां के दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सारे कष्ट नष्ट हो जाते हैं।

मंदिर के पुजारी विनय पाठक बताते हैं कि पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा बलवन्त सिंह के काल 1752 ईस्वी में शक्त्ति पीठ मां भगवती देवी की स्थापना नीम के पेड़ वाले चबूतरा पर पिंडी के रूप में की गई थी। मां की पूजा वर्षो तक की जाती रही। इस कोठी से सिकंदरशाह नामक जागीरदार राजा बलवन्त सिंह का लगान वसूली इस क्षेत्र में किया करता था। उस समय सिकन्दरपुर का प्राचीन नाम दाशीपुर था। मंदिर के वर्तमान पुजारी एवं ग्रामीण बताते हैं कि 1861 ईस्वी में काशी नरेश राजा ईश्वरी प्रसाद सिंह की ओर से आरामगाह प्रांगण में कोट मां भगवती देवी मंदिर का निर्माण कराकर पूजा पाठ, साफ सफाई की व्यवस्था कराई गई। बीच-बीच में महाराज का आना-जाना लगा रहता था। समय के साथ धीरे धीरे कोठी पूरी तरह से ध्वस्त हो गई। ऐसा माना जाता है कि कोठी के अवशेष के नीचे खजाना दबा हुआ है। मंदिर प्रांगण के सुंदरीकरण, शौचालय, विद्युतीकरण, रैनबसेरा व पौधारोपण की आवश्यकता है।
