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वाराणसी

BHU साइंटिस्ट की बड़ी खोज, अब पराली जलने पर नहीं उठेगा धुआं, बढ़ जाएगी फसलों की पैदावार, जानिये कैसे

वाराणसी। अब पराली जलने पर धुआं नहीं उठेगा। यही नहीं पराली जलकर कोयला बन जाएगी जिससे कि इसका इस्तेमाल खेतो की उर्वरता बढ़ाने के लिए किया जाएगा। क्योंकि इसमें 100% शुद्ध कार्बन डाई आक्साइड होता है। इसकी खोज काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के कृषि विज्ञान संस्थान ने की है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. राम स्वरूप मीणा ने इस शोध को पूरा करने के लिए 3 साल का समय लिया है। BHU के एग्रो फार्म में करीब 20 बिस्वा जमीन पर गेहूं की फसल में यह प्रयोग किया जा रहा है।

इस खोज के जनक कृषि वैज्ञानिक डॉ राम स्वरूप मीणा ने बताया कि साल 2020 में तकनीक पेटेंट कराया गया है। शोध की गुणवत्ता को देखते हुए भारत सरकार ने दो प्रोजेक्ट दिए हैं। और साथ ही 3 साल का समय मिला है। डॉ. मीणा ने कहा कि आजकल पराली को या तो जला देते हैं या फिर, उसका खाद बनाकर खेतों में फैला देते हैं। मगर, ये दोनों प्रक्रिया वातावरण में CO2 इमीशन को बढ़ावा देती है। जलने के बाद धुएं के रूप में, वहीं खाद बनकर खेतों से गैस फॉर्म में बनकर वातावरण से मिल जाता है। मगर, जब यह बायोचार (एक प्रकार का चारकोल) के रूप में खेत में मिलाया जाएगा तो यह खेत की मिट्टी से चिपक जाएगा।

बढ़ेगी फसलों की पैदावार
एक तरह से किसान वातावरण के कार्बन को सोखकर अपनी जमीन में डाल रहा है। इससे फसलों की पैदावार बढ़ जाएगा। हमने इस शोध को करने के लिए BHU के एग्रो फार्म में करीब 20 बिस्वा जमीन पर गेहूं की फसल में प्लॉट वाइज सैंपल्स बांटे हैं। एक खेत में गन्ने के छिलके का बुरादा सुलगाया है ताे वहीं दूसरे में पराली से बना बायोचार। वहीं, अलग-अलग प्लॉट में कार्बन कंटेंट भी अलग- अलग रखा गया है। किसी-किसी प्लॉट में खाद भी दिया जा रहा, वहीं किसी में बिल्कुल भी नहीं। गेहूं के खेत में गन्ने के छिलके का बायोचार डाला गया है।

मिट्टी को नहीं पड़ेगी केमिकल फर्टिलाइजर की जरूरत
डॉ मीणा ने बताया कि इसकी कटाई के बाद पता चलेगा कि इससे क्रॉप पर क्या इंपैक्ट पड़ा है।किसी-किसी प्लॉट में खाद भी दिया जा रहा, वहीं किसी में बिल्कुल भी नहीं। इस तरह से अलग-अलग मानकों पर इस तकनीक की टेस्टिंग हो रही है। सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि खेतो की मिट्टी को अब केमिकल फर्टिलाइजर की जरूरत नहीं होगी। वहीं, अनाज की क्वालिटी भी काफी अच्छी होगी।

इस तरह होता करते हैं काम
बहरहाल, इस पर काम हो रहा है। एक फसल पूरी होने बाद इस तकनीक की फाइंडिंग सरकार के सामने पेश की जाएगी। सबसे ख़ास बात ये है कि इसमें लगने वाली लागत बिलकुल कम है। बहुत कम खर्च में पराली को बायोचार बनाया जा सकता है। 10 फीट चौड़े और गहरे गड्ढे में रखकर 100 किलोग्राम पराली जला दें तो हमें 20 किलोग्राम बायोचार मिल जाएगा। इस गड्ढे में वेंटिलेशन के लिए दो पाइप लगाते हैं। एक से आसपास का शुरुआती धुआं निकलता है, वहीं दूसरे पाइप से ऑक्सीजन अंदर की ओर आता है। कुछ समय छोड़ दें तो पराली सुलगकर बायोचार बन जाती है।

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