चंदौली। भगवत्प्रेम की प्राप्ति के लिए विशेष आयु, बल, श्रेष्ठता, जाति, योग्यता व रूप की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि भक्ति भाव से प्रभु रीझ जाते हैं। जो भगवान का हो जाए, वही भागवत है। जो भगवान से संबंध जोड़ ले, वो भागवत हो जाता है। भगवान का निवास व उपदेश ही भागवत है। उक्त बातें मसोई गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन बुधवार की रात कथा वाचक चंद्रसागर जी ने कही। उन्होंने श्रोताओं को भागवत का मर्म बताया।
उन्होंने कहा कि तमाम महापुरूषों के उदाहरण दिए। कहा कि ध्रुव की आयु महज पांच साल थी। गजराज कौन सा विद्वान था, विदुर दासी पुत्र थे, उग्रसेन से कौन सा पौरूष था, कुब्जा कौन सी रूपवती थी, लेकिन भाव के कारण सबको कृष्ण की कृपा सुलभ हुई। कहा कि भगवान कपिलदेव अपनी माता को सांख्य शास्त्र का उपदेश देते हुए चौबीस तत्वों का ज्ञान प्रदान करते हैं। तत्वज्ञान होने पर मन सुख-दुख के बंधन से मुक्त हो जाता है। अहंकार व ममता के कारण ही सुख-दुख होते है। लौकिक वासना से मन बिगड़ता है और वही मन अलौकिक वासना में सुधरता है। मन यदि परमात्मा के नाम, रूप, गुण और लीला से आशक्त हो जाए तो जीव का परम कल्याण हो जाता है। उन्होंने ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि उत्तानपाद राजा की दो पत्नियां हैं, एक सुरूचि और दूसरी सुनीति। सुनीति के पुत्र होते हैं ध्रुव। ध्रुव का अर्थ होता है अविनाशी यानी जिसका विनाश नहीं होता है। माता सुनीति ने अपने पुत्र को भक्त बनाया। माता ही संस्कार देने के कारण बच्चे की प्रमुख गुरु होती है। ध्रुव की भक्ति से भगवान इतने प्रभावित हुए कि उन्हें दर्शन देने नहीं, बल्कि उनका दर्शन करने पधारे। अंत में मृत्यु देव ने भी ध्रुव के सामने सिर झुका दिया। अखिलेश्वरानंद पांडेय, सर्वेश्वरानंद पांडेय, अमरेश्वरानंद पांडेय, राजन पांडेय, अंबरीष पांडेय, अभिषेक पांडेय आदि रहे।