चंदौली। भगवान धन के नहीं भाव के भूखे हैं। प्रभु विदुर के यहां केले के छिलके से ही प्रसन्न हो गए। यदि धन के भूखे होते तो दुर्योधन के यहां भोजन करते। उक्त बातें श्री वत्सेश्वर महादेव सेवा ट्रस्ट मसोईं की ओर से आयोजित श्रीमद्भागवत कथा की चतुर्थ निशा में कथा वाचक शिवम शुक्ल ने कही। उन्होंने श्रोताओं को महात्मा विदुर व राजा परीक्षित की कथा सुनाई।
चौथे दिन की कथा का शुभारंभ क्षेत्रीय विपणन अधिकारी शहाबगंज भूपेंद्र सिंह और चकिया के मुनेंद्र गंगवार ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। शिवम शुक्ल ने कहा कि राज सिंहासन पर बैठ कर परीक्षित आनंद से राज्य कर रहे थे। कलियुग के प्रभाव से संत का अपमान कर दिया। इससे उनको सात दिन में मरने का शाप मिला। राजा ने अपना राज्य अपने पुत्र को देकर स्वयं गंगातट पर जा पहुंचे। वहां साक्षात भगवान के व्यास पुत्र सुखदेव जी के पास गए। उन्होंने राजा को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर उनका कल्याण कर दिया। कथा वाचक ने कहा कि परीक्षित की तरह ही सभी मनुष्यों के पास सिर्फ सात दिन ही शेष हैं। मनुष्य चाहे तो अपना कल्याण दो घड़ी में कर सकता है। इसलिए प्रत्येक मानव को अपने कल्याण के लिए संतों की शरण मे जाना चाहिए।
उन्होंने महात्मा विदुर के पावन चरित्र का श्रवण कराया। उन्होंने कहा कि भगवान धन के भूखे नही हैं। प्रभु विदुर जी के यहां केले के छिलके से ही प्रसन्न हो गए। यदि भगवान धन के भूखे होते तो दुर्योधन के यहां भोजन करते, लेकिन नहीं किया, क्योंकि भगवान धन के नहीं भाव के भूखे हैं।