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चंदौली : शरद पूर्णिमा पर 16 कलाओं से परिपूर्ण होगा चंद्र, पूजा का मिलता है विशेष लाभ, जानिए महत्व व पूजा विधि

चंदौली। शरद पूर्णिमा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कहते हैं। इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। साल भर में केवल इसी रात चंद्रमा संपूर्ण 16 कलाओं के साथ खिलता है। इस दिन कोजगार व्रत भी माना जाता है। कोजागरी की रात ऐश्वर्य और आरोग्य की रात होती है। इस दिन पूजा का विशेष लाभ मिलता है।

 

पंडित विनय पाठक ने बताया कि सीता जी ने पुष्पवाटिका में श्रीराम को देखा और उन्हें पति के रूप में पाने के लिए व्याकुल हो गई थीं। रात में उन्होंने चंद्रदेव से ही प्रार्थना करते हुए कहा, हे चंद्र अपने चंद्र मौली भगवान शिव और उनकी पत्नी माता पार्वती तक मेरी यह विनती पहुंचाइए। देश भर में इस दिन चंद्र किरणों में पगी हुई खीर खाने का रिवाज है। इस लिए नवदंपती को राम सीता रूप में ही देखा जाता है। धर्म शास्त्रों में इसी दिन को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। रसोत्त्सव का यह दिन वास्तव में भगवान कृष्ण ने जगत की भलाई के लिए निर्धारित किया है। कहा जाता है कि इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से सुधा झरती है। इसी दिन श्रीकृष्ण ने मुरली बादन करके यमुना तट पर गोपियों संग रास रचाया था। इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा पूजन किया जाता है। उन्होंने बताया कि इस दिन शिव, पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा कि जाती है। यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ, राधा दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है। शरद पूर्णिमा से ही स्नान व्रत पूजन प्रारंभ हो जाता है। माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी देवताओं का पूजन करती हैं। उस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत समीप आ जाता है। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ हो जाता है। विवाह होने के बाद पूर्णिमा (पूर्णमासी) के व्रत का नियम शरद पूर्णिमा से लेना चाहिए। शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ रहता है। इस दिन आकाश में ना तो बादल होते हैं और न ही धूल के गुबार होते हैं। इस रात्रि में भ्रमण और  चंद्र किरणों का शरीर पर उस दिन पड़ना बहुत शुभ माना जाता है। प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले इस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं। इस दिन शिव पार्वती और कार्तिकेय का भी पूजा कि जाती है। यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ राधा दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है।

 

कैसे मनाएं शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्र आभूषण से सुशोभित करके आसन, आचमन,  गंध, अक्षत, पुष्प,धूप दीप, नैवेद्य, तांबूल, दक्षिणा आदि से पूजन करना चाहिए। रात्रि के समय गौ दूध (गाय का दूध) से बनी खीर में घी और चीनी मिलाकर अर्ध रात्रि के समय भगवान को अर्पण (भोग लगाना )करना चाहिए। पूर्ण चंद्रमा आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें तथा खीर का नैवेध अर्पण करके, रात को खीरसे भरा बर्तन खुली चांदनी में रख कर, पूर्णिमा व्रत करके कथा सुनना चाहिए।

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